खेतीहर
खेतीहर
ज़मी सूखी नहीं बारिश,करें क्या आज खेतीहर ।
खड़ा सोचे बनूँ कैसे, बिना बारिश यहाँ हलधर ।।
बिना चारे रहें कैसे, बता दाता मुझे साईं।
खड़ा खेतों कृषक सोचे, करूँ क्या मैं बता भाई ।।
तपे धरती इधर देखो, भला कैसा समय आया।
नहीं पानी नजर आता, भयंकर रूप दिखलाया ।।
बिना बारिश नहीं कुछ भी, प्रकृति से प्रेम कर लेना।
करोगे छेड़ खानी तुम, सभी जीवन मिटा देना।।
