अहिंसा
अहिंसा
किसी भी प्रकार की हिंसा ना करें।
प्रेम पूर्वक ही एक दूसरे से व्यवहार करें।
यूं ही समय बदलता है,
नफरत से कहीं संसार चलता है।
करके क्रोध मोह लोभ और इच्छा।
नहीं लगेगा कुछ भी अच्छा।
पतन के गर्त में गिर जाओगे।
जब हिंसा में संलग्न हो जाओगे।
तो खुद को कैसे बचा पाओगे ?
आत्मग्लानि के भंवर में फंसकर,
खुद को माफ कभी ना कर पाओगे।
जीवन में खुद भी कष्ट उठाओगे
और अपनों को भी रुलाओगे।
क्षमादान अगर करना सीखा
समय का इंतजार अगर करना सीखा।
हिंसा को प्यार में बदलना सीखा।
अंतर में अपने परमात्मा को देखना सीखा
तो प्यार सदा ही तुम पाओगे।
हिंसा को अगर अपनाया तो बदले में भी तुम्हें हिंसा ही पाओगे।
दुखी रहोगे खुद तो जीवन में अपने बच्चों को भी दुखी कर जाओगे।
लेकिन कई बार शांति स्थापित करने के लिए हिंसा भी धर्म होता है।
समझना होगा मानव तुमको
कायरता और अहिंसा में बहुत फर्क होता है।
हम मानव हैं और प्रत्येक प्राणी मात्र की रक्षा करना हमारा धर्म होता है।