आहें
आहें
सबके है अपने सपने
अपने ख्वाब
कुछ बनने के
कुछ अपना करने के
जीवन में अपनी मेहनत से
अपनी खुद की एक पहचान बनाने के
कोई बनना चाहता है डाॅक्टर
तो कोई इंजीनियर
कोई फौजी बन देश की सेवा करना चाहता है
तो कोई चाहता है बनना कलेक्टर।
मैं भी देश की सेवा करता हूं
बल्कि सेवा से भी कुछ अधिक
मैं तो इस देश को पोषित करता हूं,
ठीक वैसे ही जैसे एक मां
अपने बच्चे की भूख मिटाती है
मैं भी एक पिता की तरह
इस पूरे देश की भूख मिटाता हूं
कुछ समझे मैं कौन हूं
मैं हूं अन्नदाता
मैं हूं इस देश का किसान।
योगदान कुछ कम नहीं
इस देश के प्रति मेरा भी
क्योंकि मैंने सुना है
पेट पालने वाले को
भगवान कहा जाता है
पर फिर भी न जाने क्यों
मुझ जैसा कोई न बनना चाहता है,
और तो ज्यादा क्या कहूं
मेरा खुद का ही बेटा भी
अब खेती से कतराता है ।
शायद इसीलिए क्योंकि
खून-पसीना बहाकर भी
हाथ मेरे बस किस्मत का ही आता है
इतना करने के बाद भी काम को मेरे
नहीं सम्मान कोई दिया जाता है
सुविधाएं नहीं कुछ मिलती हैं
न मुझे सराहा जाता है,
प्रकोप प्रकृति का कभी तो
कभी कर्ज में जीवन जाता है
नौबत ऐसी भी आ जाती है
कि लटक पेड़ से कभी कभी
मर जाने को जी चाहता है।
किससे कहूं मैं बात मन की
जब देश चलाने वाला
भी मेरे ही हक को खाता है
कुछ रखूं मांग अपनी जो मैं
तो आंख मूंद इतराता है
दिल फूट फूटकर रोता है
जब मेरी आंहों को सुनकर भी
अनसुना कर दिया जाता है,
कुर्सी पर बैठने वाला भी बन
बहरा चलता जाता है
उसे याद तभी मैं आता हूं
जब वह वोट मांगने आता है
और तो ज्यादा क्या कहूं
अब मेरा खुद का ही बेटा
भी खेती से कतराता है।
