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नंदन पंडित

Tragedy

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नंदन पंडित

Tragedy

ग़लत हो गए भैया

ग़लत हो गए भैया

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करते सही-सही

घर भर की

ग़लत हो गए खुद ही भैया!


रही चिढ़ाती

फटी बिवाई

जीवन भर नंगे पाँवों को

फटे वस्त्र ने

ढाँपे रखा ले देकर

तन के घावों को

भूखी आँतें

मौन हो गईं

करतीं-करतीं ता-ता-थैया!


टघल-टघल कर

हाँड़-माँस ने

सब के सिर पर छप्पर छानी

एक देखने को

मुस्काहट घर पर

वारी भरी जवानी

स्वयं लेटकर कुश-काँटों पर

सबको सौंपी

कोमल शैया!


बिखर गईं आशाएँ सारी

टिकी रहीं जो

जारज भुज पर

उगते पाख

फुर्र हो निकले

कहके विहग घोसला तजकर

‘तुमने क्या दी,

कंगाली बस

सूखी रोटी, राम मड़ैया!’



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