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नंदन पंडित

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नंदन पंडित

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मुफ़्त

मुफ़्त

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मुफ़्त गगन है

धरा मुफ़्त है

मुफ़्त नदी का पानी

मुफ़्त-मुफ़्त है

धूप सुनहरी

मुफ़्त किरन नूरानी


मनहर

जग महकाने वाले

मुफ़्त पुहुप बहुरंगी

चंदा की

चाँदनी मुफ़्त है

इन्द्रधनुष सतरंगी


नहीं माँगती

मूल्य साँस का

ठंडी हवा किसी से

भौंरे भी गुन-गुन

करते हैं

फ्री में हँसी-खुशी से


ईश्वर ने सब

दिया मुफ़्त में

फिर यह लूट किसलिए

मानव तू

पैसे लेता है

किस कारण कह छलिए?


नैसर्गिक सारी

चीजें हैं

सबके लिए बराबर

सबका हक है

सुन लोभी

जल, वायु, गगन, धरा।


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