हिम्मत
हिम्मत
बाँध हिम्मत चले राही
तो साथी मिल ही जाते हैं।
सामने आ जो जाते जन
तो तूफां टल ही जाते हैं।
मनुज गर धैर्य रखे तो
नहीं कुछ गम सरीखा है
पहाड़ों का भेद सीना
कुटज ने जीना सीखा है
वारि की चोट से नित-
प्रति प्रस्तर गल ही जाते हैं।
मंजिलें भी ढूँढ़ती हैं
कर्मवीरों की ही बाहें
आलसी के लिए जग की
बंद रहती सदा राहें
पाँव जो देख डर जाते
काँटों से छिल ही जाते हैं
मिलेगा खाक क्या उनको
नहीं जिनमें कलेजा है
कश्तियाँ उनकी ही तैरें
जिन्होंने जल में भेजा है
कहाँ जोखिम उठाए बिन
हुनर यूं ही चल आते हैं ?