महुआ के कूचे
महुआ के कूचे
महुआ के कूचों की कसम
पास आ जाओ अब तो सनम।
फागुन से औपचारिक भले,
जिंदा रखने बचपन के भरम।
जितने कानन थे उजड़े पड़े
जितने कान्तर थे सूखे खड़े
सब नई कोपलें धारकर
हैं चिढ़ाने लगे नकचढ़े।
पाँव भी अब भिगोती नहीं
दूब की नन्ही-नन्ही शबनम।
टेसुओं के यौवन गदराए
धीरे-धीरे भ्रमर बौराए
देखकर सेमल के लाल को
ब्याहता कुमुदिनी शर्माए।
खोह में कीर जो थे जने
पंख भरने लगे उनके दम।
नदी के मौज मरने लगे
भानु नभ में अखरने लगे
आम्र मञ्जरियों की गोद से
वो टिकोरे उतरने लगे ।
बढ़ के बेलवारी में बिल्वफल
रोकने अब लगे हैं कदम।

