अनवरत सी चलती जिंदगी
अनवरत सी चलती जिंदगी
अनवरत सी चलती जिंदगी और भागते हमारे कदम,
एक दूजे से आगे निकल जाने को, करते हैं कितने जतन।
पता है जाने को उस पार, चलानी होगी खुद की पतवार,
फिर भी दूसरों की नावों को, बनाते रहते हैं अपना शिकार।
अपने अश्कों के निशान तो रहते हैं, सदियों तक याद,
पर दूसरों के दर्दों पर करते हैं, वो वाद विवाद।
रिश्तों में भी जाने कौन सा जहर ये चढ़ा है,
अपने ही अपनों के पीछे खंजर लिए खड़ा हैI
वो कहते हैं, पहाड़ों की तरह, रिश्तों को भी आवाज लगाना पड़ता है,
पर मेरे मौन में, उनके धोखे सने पड़े हैं, क्या ये भी बताना पड़ता है।
शीशे पर पड़ी धूल तो सब साफ़ कर देते हैं,
पर दृष्टिकोण पर गिरे परदे, खामोशी से जान लेते हैं।
अंधेरे घरों को रौशन करने कोई नहीं आता यहाँ,
पर तेरी देहरी से दीप चुरा, करना चाहेगा रौशन अपना वो जहाँ।
जाने इस रात की सुबह कब आयेगी,
और सत्य के प्रकाश में जिंदगी फिर मुस्कुराएगी।
इक दिन मिली थी मौत भी, मुंह फेर कर बोली,
तेरे हिस्से के सुकून में वक्त है, भर ले अपने यादों की झोली।
