इंतजार में गुज़र रही ज़िंदगी मेरी
इंतजार में गुज़र रही ज़िंदगी मेरी
जिसे शिद्दत से चाहा, उसने ही ना समझी
मोहब्बत इस दीवाने की।
फिर भी जाने क्यूँ, इंतजार में ही गुज़र रही है
हर शाम, ज़िंदगी मेरी।।
मोहब्बत के इस सफ़र में, बनी रही
नाकामयाबी ही मेरा हमसफ़र।
वक़्त ने साथ न दिया किस्मत ने भी समझी
बेवजह हर कोशिश मेरी।।
कहना तो था, बहुत कुछ उससे
पर दिल की बात रह गई दिल में।
आँखों को भ्रम था जिसका,
वो तो बस तन्हा, परछाई थी मेरी।।
सजाने लगा था ख़्वाब, दिल ही दिल में
खोता ही गया मैं इश्क में।
कैसे भूल गया, मैं हूँ धूल इस ज़मीं का
और वो है आसमान की परी।।
जाने क्यूँ लगा बैठा उम्मीद बेहिसाब
मोहब्बत की गलियों में।
जिसे ज़िन्दगी समझ बैठा वो तो कभी
ज़िन्दगी थी ही नहीं मेरी।।
मोहब्बत थी ये एक तरफा
उन्हें तो इल्म भी नहीं था इसका।
ख़्वाबों में बनी प्यार की वो कश्ती
डूब गई ख़्वाबों में ही मेरी।।
अँधियारी रात हो गई ज़िन्दगी
जिसकी न कोई मंजिल, न ठिकाना।
शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गई
मोहब्बत की कहानी मेरी।।
एक ऐसी कहानी जिसका एक किरदार
था बस मेरे तसव्वुर में।
मिली ना मोहब्बत की सौगात
शायद लकीरें ही अधूरी थी मेरी।।
तोहफ़ा मिला मुझे रुसवाई का
जो दिया था उसने अनजाने में।
कैसे ठहरा सकता हूँ कुसूरवार उसे
दूर ही सही पर वो इबादत है मेरी।।
निर्मल बहती नदी की धारा सी वो
अंजान ज़िंदगी के हर ग़म से।
यहाँ तो हर लम्हा हर मोड़ पे
मुश्किलों से गुज़रती है ज़िंदगी मेरी।।
ताउम्र करता रहा तन्हा सफ़र
बस उसी की यादों को समेटे हुए।
इन्हीं यादों की चादर ओढ़कर
अंत तक कट जाएगी ज़िंदगी मेरी।।

