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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Tragedy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Tragedy Inspirational

'' बादल ''

'' बादल ''

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पहाड़ों के रिक्त स्थान को जो भर देते हैं

मिट्टी की खुशबू में दो बूंद तोय की धर देते हैं।


जिन्हें देख पंथी अपनी राह में आह भरता होगा

एक प्रेमी इन्हें देख प्रेयसी का खत पढ़ता होगा।


कोई शायर कोरे मन में रेखांकित इन्हें करता है

गणित नहीं विज्ञान नहीं वो भाव अपने पढ़ता है।


एक किसान की आस इनसे थोड़ी उधारी मांगती है

एक मां जिदीयाये बच्चे का मुंह गर्जन सुन ढापती है।


एक नन्हा अंकुर आज निद्रा से जाग गया होगा

घर के कामों को छोड़ मन जरूर रुक रहा होगा।


पेड़ इन्हें देख कर अपनी भुजाएं फैलाते है

कबूतर इनसे गुजरते हुए अजीजों का संदेशा लाते हैं 


दुबक कर आए बच्चे के, भीतर डर की ललक छलकती होगी,

ऐतिहासिक युद्ध छोड़ कर गोरी, अब प्रेम डायरी में सिमटती होगी।


पृथ्वी की धुरी में बैठ मैं इनके साथ उड़ती हूं

सुकून का दूसरा नाम मेघ सौंदर्य रख देती हूं।



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