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Barkha Munot

Tragedy

4.7  

Barkha Munot

Tragedy

औरत

औरत

1 min
612



रुकते नहीं कभी कदम मेरे, 

थके नहीं कभी कर्तव्य मेरे,

सासों की तरह निरंतर उम्मीदें है चलती,

कभी कोई तो कह दें,

कैसे तेरी दुनिया है चलती,

रिवाजों की बेड़ियाँ मुझसे है कहती,

धर्म है तेरा, इसलिए तुझी से हुँ कहती,

सजना सवरना, व्रत और उपवास,

ये सब भी है, पति के सिर का ताज,

जब भी झुका कदमों में मेरा माथा,

वहाँ भी पति के लिए ही दुआओं की गाथा,

बच्चे कब बड़े हो गए, 

जो मेरे थे अब किसी और के हो गए,

एक चूल्हा था, जो मेरा था,

हर एक के इशारों पर, जायके का स्वाद कहता था,

माँ से कब माँ जी हो गई,

और करची से दूरी हो गई,

सब कहते है, मैं भी कहती हूँ,

मैं हर काम में परफेक्ट कहलाती हूँ,

फिर भी कभी दासी, तो कभी आया कहलाती हूं,

किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की बहन कहलाती हुँ,

हाँ मैं एक औरत हूँ,

मुझे जो कहो मैं वो कहलाती हूँ..!!



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