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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

एक नई औरत.......!

एक नई औरत.......!

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मैंने देखा है

अक्सर

औरतों को

छिप छिपकर रोते हुए,

घुटते माहौल में भी

अक्सर

मंद मंद मुस्कराते हुए,


बालों की उलझी लटों को 

हाथों से खुद 

उलझाते हुए,

खामोश खोए

गहन सोच में 

अक्सर

नाखून चबाते हुए,


अपने नर्म हरे जख्मों को 

धीरे धीरे 

कुरेदते

पल्लू में

फिर छिपाते हुए,


बात बात पर घबरा कर

हर आहट पर

हड़बड़ाते 

पल्लू को कमर में 

खोंच कर 

काम में जुटते हुए,


घर परिवार 

के लिए

दिन रात

मरते खुटते

कई स्वांग 

नित नए रचते हुए,


उस ईश्वर की 

बेहतरीन कृति को 

नए नए

किरदारों में

नए रूप में

ढलते हुए,

मैने देखा है 

औरतों को

रोज

एक नई

औरत बनते हुए.......!


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