अंतिम कदम
अंतिम कदम
मन की बेचैनी जब
अंदर ही अंदर तड़पाती है,
पीड़ा और दुख जब कोई आत्मा
सहन नहीं कर पाती है।
सब कुछ हो कर भी
जब एक खालीपन सा रह जाता है,
जब आँखों के आगे
घना अंधेरा सा छा जाता है ।
जीवन के सब रंग
सहसा बेरंग से लगने लगते हैं,
सब सपने जब कांच की भांति
टूट बिखरने लगते हैं ।
आशाओं की सब प्रत्याशाएं
समाप्त हो जाती हैं ,
दिल घुट घुट कर रोता है
और आँखें नम हो जाती हैं।
मन की व्यथा बांटने वाला
जब कोई नजर नहीं आता है,
शायद तब ही इंसान
आत्महत्या का कदम उठाता है ।
यह कदम उठाने वाला
जाने क्यों कायर कहलाता है,
जीवन से हार मानने का
उस पर कलंक लग जाता है।
उस पर क्या बीती यह वही जाने,
जो मौत को गले लगाता है,
क्यों और किन हालातों में
वह यह अंतिम कदम उठाता है।
