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Deepika Sharma narayan

Tragedy

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Deepika Sharma narayan

Tragedy

पीछे छूटती स्त्री

पीछे छूटती स्त्री

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साथ चले थे दोनों मंजिल तक जाने को

रास्ते बदलते गए मंजिलें बदलती गई 

अनगढ़ अपरिपक्व कच्ची मिट्टी सी मैं 

प्रस्तर प्रतिमा सी भावहींन होती गई।


 पीछे तुम्हारे चलते चलते अस्तित्व अपना खोती गई ।

सफलता के सोपान तुम्हारे मेहनत के परचम तुम्हारे 

मैं नींव शिला बन इमारत की ऊंचाइयों में खोती गई ।

घर तुम्हारा संतान तुम्हारी, हर बात से ऊंची बात तुम्हारी,

मैं पूजा घर की बाती बन क्यों राख होती गई।

खुशियां तुम्हारी सपने तुम्हारे दर्प के रंग से रंगी हर बात तुम्हारी,

तुम्हारी जीत को अपनी जीत मान क्यों खाक होती गई ।


साथ चले थे दोनों मंजिल तक जाने को ,

अस्तित्व तुम्हारे को समेटते समेटते मैं क्यों राख होती गई ।

गृह स्वामिनी अर्धांगिनी जननी, इन्हीं शब्दों के छलावे में पगी हर बात तुम्हारी ।

विदित था सत्य मुझे सदा से, जानकर जीत भी मेरी क्यों मात होती गई ।

साथ चले थे दोनों फिर भी क्यों जीत तुम्हारी और मेरी हार हो गई। 


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