हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस
हर साल हिंदी दिवस मनाते हैं,
और अपनी भाषा हिंदी का मजाक उड़ाते हैं
हम भारतवासी क्यों यह ढोंग रचाते हैं।
नन्हा शिशु जब बोलना सीखे तो राम राम की जगह
गुड मॉर्निंग गुड नाइट की रट लगाते हैं।
और फिर भी गर्व से हिंदी दिवस मनाते हैं,
हम भारतवासी क्यों यह ढोंग रचाते हैं।
स्कूलों का तो और बुरा हाल है,
हिंदी को हेय समझना हम बच्चों को अच्छे से सिखाते हैं,
बालक अगर हिंदी बोले तो उस पर फाइन लगाते हैं,
और फिर भी गर्व से हिंदी दिवस मनाते हैं,
हम भारतवासी क्यों यह ढोंग रचाते हैं।
बच्चा जब अंग्रेजी गाने गाए मन में फूले नहीं समाते हैं,
और गलती से हिंदी गुनगुना
दे तो शर्म से लजाते हैं,
और फिर भी गर्व से हिंदी दिवस मनाते हैं,
हम भारतवासी क्यों यह ढोंग रचाते हैं ।
बात बच्चों की ही नहीं साहब,
आजकल के एजुकेटेड जंतु उन्नासी नवासी में ही उलझ जाते हैं।
और हां इसमें वो तनिक भी नहीं लजाते हैं,
और फिर भी आखिर क्यों यह दिवस मनाते हैं,
हम भारतवासी क्यों यह ढोंग रचाते हैं।
अपने ही घर में हिंदी को क्यों सम्मान दिलाते हैं।
और जब हिंदी को कमतर आंकना है,
तो क्यों यह प्रपंच रचाते हैं, क्यों हिंदी दिवस मनाते हैं।।
हिंदी के उत्थान के लिए सब मिलकर कसम खाते हैं,
उपनिषद खंडकाव्य नहीं, पर घर के बच्चों को गर्व से हिंदी सिखाते हैं,
अपने घर की बोली को अपने जिव्हा पर सजाते हैं,
हेय नहीं है हिंदी भाषा नई पीढ़ी को यह सिखाते हैं,
और बदलना तो खुद को भी होगा, हिंदी दिल से अपना कर,
सही अर्थों में हिंदी दिवस मनाते हैं।
हिंदी दिल की बोली है इसको इसका सम्मान
वापस दिलाते हैं और फिर गर्व से हिंदी दिवस मनाते हैं।