हां कमजोर हूं बहुत
हां कमजोर हूं बहुत
परिस्थितियां हो विषम या अंधेरा हो सघन
गर्म रेत पर रास्ता खुद ही उकेरना है
शायद इसलिए पांवों में जलन महसूस नहीं होती,
और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।
चलना हो दूर और मंजिल हो ओझल,
नाकामयाबियों के बीच कामयाबी सींचनी है खुद
शायद इसलिए हाथ के फफोलों में पीर नहीं होती,
और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।
मन पर घाव हो बहुत या दर्द हो बेइंतेहा,
गलतियों से अपनी खुद ही सीखना है अब
शायद इसलिए ठोकरे भी अब यूं ही हैरान नहीं करती,
और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती ।
कमजोरियों को हौसला बना लड़ना है अब,
कांटों की चुभन में भी खिलना है अब
यूं ही कोई स्त्री पाषाण नहीं होती,
और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।