STORYMIRROR

Deepika Sharma narayan

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Deepika Sharma narayan

Abstract Tragedy Inspirational

हां कमजोर हूं बहुत

हां कमजोर हूं बहुत

1 min
374

परिस्थितियां हो विषम या अंधेरा हो सघन

 गर्म रेत पर रास्ता खुद ही उकेरना है

 शायद इसलिए पांवों में जलन महसूस नहीं होती,

और हां न कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।


 चलना हो दूर और मंजिल हो ओझल,

 नाकामयाबियों के बीच कामयाबी सींचनी है खुद

शायद इसलिए हाथ के फफोलों में पीर नहीं होती, 

और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।


मन पर घाव हो बहुत या दर्द हो बेइंतेहा,

 गलतियों से अपनी खुद ही सीखना है अब

 शायद इसलिए ठोकरे भी अब यूं ही हैरान नहीं करती, 

और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती ।


कमजोरियों को हौसला बना लड़ना है अब,

कांटों की चुभन में भी खिलना है अब

यूं ही कोई स्त्री पाषाण नहीं होती,

और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract