महंगाई पर
महंगाई पर
संसद और विधानसभाओं
में करोड़पतियों की भरमार
फिर कैसे हो सकती है वहाँ
महंगाई पर चर्चा की दरकार
धनिक ही धन को समेट रहा
इस देश में साल दर साल
लेकिन संविधान के पैरोकारों के
लबों पर ताला जड़ा लगातार
संविधान देता नहीं किसी को भी
धन के सकेंद्रीकरण की इजाजत
बड़ा सवाल यही कि कौन करेगा
संविधान के मूल्यों की हिफाजत
रोजगार के घटते अवसरों पर
दिखे नहीं कहीं नेताओं में क्षोभ
अधिकांश को सदा बना रहता
सिर्फ वेतन.भत्तों का ही लोभ
क्षेत्र के प्रश्नों को सदन में उठाने
से भी अधिकांश करते हैं गुरेज
पर पांच साल तक सरकारी धन
दोहन कर संपत्तियां लेते सहेज
जनता स्वारथ सिद्धि को सदैव
बनी रहती है मूक और वधिर
जन प्रतिनिधि पूरे कार्यकाल में
सोखा करते हैं जनता का रुधिर।
