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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Action Classics

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Action Classics

मैं... इतना बुरा हूं क्या?

मैं... इतना बुरा हूं क्या?

2 mins
235


रहते हो नाराज़ से मुझसे

गुमसुम-गुमसुम से चुप-चुप से

कहते हो ना कुछ सुनते हो

ख़ुद में ही खोए रहते हो

मुझसे कैसी गिला कहो ना


ऐसे तो ख़ामोश रहो ना

औरों को सब बात बताते

केवल मुझसे ही क्यों छुपाते

मुझसे ही सबको है शिकायत

सबकी मुझसे रही अदावत

मेरी बातों से झुंझलाहट


मुझसे इतनी क्यों कड़वाहट

कह जाएं जो मन में आए

सही ग़लत इल्ज़ाम लगाए

मेरी बातें भली न लगती

कांटों सा सबको हैं चुभती


संबंधों में भेद ये कैसा

आपस में ही खेद ये कैसा

सबसे ठीक ही बतियाते हैं

मुझसे ही बस कतराते हैं

मेरा कुछ अस्तित्व नहीं है


धनी मेरा व्यक्तित्व नहीं है

जिसके मन में जो भी आए

भला बुरा मुझसे कह जाए

मुझसे न संबंध सुहाए


भिन्न-भिन्न प्रतिबंध लगाए

सभी एक धारा में बहते

अलग मुझी से केवल रहते

मुझसे सबने किया किनारा

कौई नहीं जो मेरा सहारा

छोटे-बड़े सुनाते सब हैं


मेरा दोष बताते सब हैं

अपना दोष कहां कोई देखे

सदा औरों की भूल निरेखे

लोग कहें कुछ, सब चलता है


मेरा कहना क्यों खलता है

भूल मेरी माफ़ी न पाए

औरों के सब क्षम्य हो जाए

सदा तिरस्कृत मैं होता हूं

छोटे-बड़े सब की सहता हूं

मुझ पर भी विश्वास नहीं है

क्या मुझ पर उपहास नहीं है।


आज हुआ हूं मैं नालायक

रहा नहीं कुछ करने लायक

साथ मेरे लाचारी है

मजबूरी..... बीमारी है

करना तो कुछ मैं भी चाहूं

साथ निभाना मैं भी चाहूं


साथ नहीं देता तन है

कुंठाग्रस्त ये जीवन है

अपनी व्यथा सुनाऊं किसको

मन के घाव दिखाऊं किसको

मान लिया कि मैं दोषी हूं

तेरा हूं, जैसा जो भी हूं


दुःख होता है बातें सुनकर

मन पर लगते बोल के पत्थर

चुभती हैं कांटों सी बातें

मन को लगती हैं आघातें


फिर भी सबको प्यार मैं देता

अपना नेह दुलार मैं देता

नहीं किसी का रहा सगा

मैं.... इतना बुरा हूं क्या ?


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