हार के भी जीत लिए......
हार के भी जीत लिए......
ये जिन्दगी भी कितनी अजीब है
चलता तो रहता पर कुछ करवाता रहता,
देखता तो रहता पर कुछ दिखलाता रहता,
हँसता तो कभी कभी और हँसाता रहता,
रोता तो है ये कभी और रुलाता भी रहता,
रिश्ते बनाता जाता और कुछ असलियत बताता,
कमजोर कभी हो जाता और कुछ कमजोरी दिखलाता,
कुछ सीखता रहता और कुछ सिखलाता,
ये कुछ सपने दिखाता और कुछ पूरा भी करता,
जितने को सब चाहता पर कभी हार भी जाता,
चलते चलते कुछ कहानी लिखता और कुछ लिखवाता,
समय के साथ गुन गुनाता और संगीत भी बनाता,
गुन गुनाते ही कुछ लफ्ज़ जोड़ देता वो गीत बन जाता,
कभी किसे दिल में बिठाता तो कभी किसे दिल दे देता,
कभी कभी तो ये आवाज भी देता और कुछ सुनता रहता,
कभी कभी ये आईना बन जाता और अतीत को दिखता,
पर अतीत में उसके जोर नहीं और आगे की सोचता,
कहने को तो सब अपने पर सबकी साथ नहीं मिलता,
सोच भी कभी सोचने मजबूर करता पर वो नहीं रुकता,
हार जीत ये झूठे लड़ाई में फंस जाता पर हौसला नहीं हारता,
विश्वास अगर खुद पे हो तो सब आसान हो जाता,
ये जिन्दगी तो ग़जब की है समय के पाये पे चलता ही रहता,
हौसले को और बुलंद करके आगे ही बढ़ता जाता,
और कभी हार के भी वो जीत जाता और सिकंदर कहलाता,
दुनिया उसे देखता ही रहता और हार के भी जीत लिए कहता.
ये जिन्दगी भी कितनी अजीब है,
इसका सफर तो पहले से तय होता,
सिर्फ इसकी रंग रूप ये बदलते रहता,
दुनिया के सारे खेल देखता और कुछ वो भी खेल लेता,
अच्छे बुरे की कुछ फर्क नहीं पड़ता,
शायद अपनी दिन गिनता ये रहता,
जब चलते चलते कभी ये ठोकरें खाता,
तब रुक जाता और पीछे मुड़ के देखता,
और समझने लगता वो तो सब बीते हुए पल था,
अगर उसे अनदेखा ना करता तो ये ठोकरें नहीं खाता,
फिर मन ही मन एक अजीब सा ख्याल आता,
ये रिश्ते नाते, ये धन दौलत ये सान शौकत, सब झूठा था,
कहने को तो सब अपने पर कोई अपनापन नहीं था,
सब तो अपनी अपनी हार जीत की झूठा सपना था,
सिर्फ अपना दिल और सोच जो अपनी साथ था,
दोनों ने मिल के हौसले को बढ़ाया, नहीं तो वो टूट जाता,
फिर ये क्यूं ऐसा होता, अपने आपको पूछते रहता,
जीत कर भी कोई क्यूं हारा हुआ महसूस करता?
शायद उस जीत में अभी भी उसे विश्वास नहीं होता,
क्यूं की उसकी हौसले शायद कमज़ोर होता,
तो ये जिन्दगी अपने हौसले को टूटने ना देना, उसे है गहरा नाता,
उसी के साथ तो बढ़ते बढ़ते, हार के भी जीत लिए सबको ये जमाना कहता.