STORYMIRROR

Madhu Vashishta

Abstract Action

4  

Madhu Vashishta

Abstract Action

मेरा घर

मेरा घर

2 mins
367

डर लगता है मुझे एकदम साफ घर से।

घबरा जाता हूं अगर बिस्तर पर सिलवट ना हो।

जमीन पर कुछ बिखरा ना हो

और सोफे पर कुछ पड़ा ना हो।

साफ घर मुझे म्यूजियम से दिखते हैं

घर में पसरी हुई शांति ,

मेरे कलेजे को चीर जाती है।

बिना शोर के घर में बेफिक्र नींद ही कहां आती है।

बड़े बड़े बंगलों की बात नहीं है यह साहब

मुझे तो अपना घर ही प्यारा लगता है।

छोटे से घर के तीन कमरों में ही मेरे 3 बच्चे

और मां-बाप का जमावड़ा लगता है।

मैं चौकीदार हूं साहब।

साहब ने अपने घर में मुझे रहने को बोला था।

ताकि मैं घर के हर कोने को साफ करवा सकूं ,

इसलिए हर कमरे को ही खोला था।

ए.सी की ठंडक में दम घुटता है मेरा

छत पर चांदनी की ठंडक और बच्चों से बातें

मां-बाप की झिड़की, और पत्नी के इशारे

अच्छा लगता है मुझे तो अपने ही घर में बसेरा।

जाने बड़े लोग इतने बड़े घर में अकेले कैसे रहते हैं

किस गंदगी को हमेशा साफ करवाते रहते हैं।

मां-बाप को तो घर में घुसने भी नहीं देते लेकिन

ड्राइंग रूम को जाने किस-किस के लिए सजाते हैं।

मैं तो हूं अनपढ़ गंवार,

मुझे नहीं है बड़े घर की दरकार।

कल आ जाएंगे साहब और चला जाऊंगा मैं

मुझे तो है अपने खुद के घर से ही प्यार।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract