अपराधी
अपराधी
हाँ-हाँ मैं अपराधी हूँ बस अधर्म करने का आदि हूँ
पर मुझको खुद पर लाज नहीं जो किया मैं उसपर गर्वित हूँ
जो सीखा सब यहीं सीखा जो देखा सब यहीं देखा
मैं माँ के पेट का दोष नहीं ना मैं सुभद्रा का बेटा
दूध की प्याली के खातिर मैंने माँ को बिकते देखा है
अपने पेट की भूख मिटाने बाप से पीटते देखा है
फटें कपड़ों से तन को ढकते बहनों के संघर्ष को मैं जानूं
गिद्ध के जैसी कामुक नज़रें मैं उन सब को पहचानूँ
भरी दोपहरी सड़क पर चलना बिन चप्पल के होता क्या
छत जो टपके बारिश में तो आसमान को रोना क्या
हाथ पसारा रोटी को तो बस गाली ही खाई है
अपने मेहनत के बदले में शोषण ही तो पायी है
तभी समझ लिया था मैंने ये दुनिया बड़ी कठोर है
चाहे कुछ भी हो जाए ना होती भाव विभोर है
तनिक उम्र में जान लिया मैंने भी ये मान लिया
ठोकर पर ठोकर देना है मैंने भी ये ठान लिया
क्या हुआ जो मैंने लूटा है ज़ालिमों को मैंने कूटा है
दोनों हाथों को फैलाकर भर लिया घर समूचा है
दुष्कर्म किए और पाप किया मैंने रावण का जाप किया
हर अन्याय के बदले में विचार भी मैंने आप किया
कल तक जो हँसते थे आज देख हमें घबराते हैं
आँखें जो हमको डसती थी अब उठने से भी कतराते हैं
हाँ-हाँ मैं अपराधी हूँ बस अधर्म करने का आदि हूँ
पर मुझको खुद पर लाज नहीं जो किया मैं उसपर गर्वित हूँ।
