कवि की पहचान
कवि की पहचान
सूर्य की भांति तेज हो, मन में भरा उल्लास,
कलम की मार पड़े, जगत को हो आभास,
मायूस दिलों में डाल दे,असीम सजग जान,
नाम कमाए हर जन, कवि की हो पहचान।
जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंच जाता कवि,
अपनी काव्य शैली से, बने समाज में छवि,
वाह वाह की गूंज सुने, सारे जगत का ज्ञान,
धर्म कर्म पर जो चले,कवि की हो पहचान।
सांझ सवेरे जिसका हो, काव्य से ही काम,
जग के लोग उसे लगे, कोई राधा कोई राम,
अपनी मातृभूमि पर, करता रहता अभिमान
देव सदृश गुण संपन्न हो, कवि की पहचान।
गांव हो या शहर हो, जिसकी छवि निराली,
उसके हर एक लफ्ज पर,बजती रहती ताली,
जहां भी जाये दे देता, काव्य जगत का ज्ञान,
मात, पिता का नाम करे, कवि की पहचान।
भोर उठकर मनन करे, अपने देश का नाम,
देवी देवता नमन करे, शिव, ब्रह्मा और राम,
धूप छांव को सम समझ,काव्य का करे दान,
सर्वगुण संपन्न के समीप, कवि की पहचान।
अपने देश की सेवा का,मन में भरा हो जोश,
दौलत से बेशक ही,खाली मिलता निज कोष,
हर सरगम को छेड़कर, छेड़ता अपनी ही तान,
भूत भविष्य से काव्य भरा,कवि की पहचान।
पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण, हर दिशा को जानता,
अपने देश को जगत में, सर्वोपरि सदा मानता,
किसी देश और भाषा का, नहीं करे अपमान,
महान आत्मा उसकी हो, कवि की है पहचान।
हँसी खुशी की बौछार से, बहलाता जन मन,
अपने गम को भूलकर, खुशियां दे सब जन,
जिसके जाने की क्षति, सारा जगत लेता मान,
हर दिल में जो बसे, कवि की होती पहचान।
जीव जगत को चाहता,अहिंसा में हो विश्वास,
कष्ट जहां पर आ पड़े, हरदम मिले वो उदास,
गद्य,पद्य एवं लेखन, मर्मज्ञ होता भाषा विज्ञान,
लाखों कोस की जान ले, कवि की है पहचान।।
