Chetan Gondalia

Fantasy Others

4.1  

Chetan Gondalia

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सूख लगे...

सूख लगे...

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सूख लगे 

जैसे पत्तों पे पानी, 

क्या जतन से सुलझाएं 

बुलबुलों की वाणी...


आंख खोलूं

नवोज्जवल भोर,

और मिंचूं तो घनी रात

आँखों के 

खोलने-मिंचने के बीच

है अपनी ठकूरात...

पल में प्रकट 

निर्झर सी किसी की

रामकहानी...

कुहूकार नभ में

गूंज उठे 

उतना गूंजारव...

सांझ के तृणकूंपल पे

चौड़ा फैला पगरव...

कोई लिंपन गेरू-मिट्टी का

सबको बहा ले जाए....!


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