Chetan Gondalia
Abstract
कुदरत का कहर भी
जरूरी था साहब,
वरना हर कोई
खुद को खुदा
समझ रहा था।
निवृत्त सेनान...
सबसे सच्चा और...
सफर जारी है.....
सूख लगे...
फ़ुरसत
समय बहरा होता...
जरूरी था...
सीख लो..
किये होंगे...
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में, दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला ! इसलिये ही हर घर के किवाड़ में, दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला !
डूबने वाले का उदय निश्चित है बस भोर का इंतज़ार करने में आलस ना हो। डूबने वाले का उदय निश्चित है बस भोर का इंतज़ार करने में आलस ना हो।
तेरा बुत बनू और बंद रहूँ मंदिर के तालों में, तेरा बुत बनू और बंद रहूँ मंदिर के तालों में,
इसीलिए मुझसे ही मुझको, कई बार तूने ही मिलवाया है। इसीलिए मुझसे ही मुझको, कई बार तूने ही मिलवाया है।
तब हरेक बिस्तर के पास एक पियानो भी होना चाहिये। तब हरेक बिस्तर के पास एक पियानो भी होना चाहिये।
भरा होता है कुछ विचित्र आकर्षण। भरा होता है कुछ विचित्र आकर्षण।
यह तो एक सुखद उपवन है, कलयुग के कहरों में। यह तो एक सुखद उपवन है, कलयुग के कहरों में।
कारण क्या था पता नहीं, थी मेरी कोई खता नहीं। कारण क्या था पता नहीं, थी मेरी कोई खता नहीं।
मानव फिर क्यों रह सकता नहीं बिना मन मुटाव मानव फिर क्यों रह सकता नहीं बिना मन मुटाव
मन उदास हो गया और फिर मेरा ‘गंतव्य’ आ गया। मन उदास हो गया और फिर मेरा ‘गंतव्य’ आ गया।
जो विकसित हो कर सपनों को साकार बनाये। जो विकसित हो कर सपनों को साकार बनाये।
मधुर मुस्कान नैनों की भाषा कान्हा तेरी है मतवाली मधुर मुस्कान नैनों की भाषा कान्हा तेरी है मतवाली
अपने सतीत्व के लिए अग्नि परीक्षा देती हैं। न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ? अपने सतीत्व के लिए अग्नि परीक्षा देती हैं। न जाने कैसी होती हैं ये स्त्र...
बदनामियां बचाए हुए तो हैं। नज़रों को झुकाए हुए तो है।। बदनामियां बचाए हुए तो हैं। नज़रों को झुकाए हुए तो है।।
आ गए वापिस फिर से मेरे पास क्या काम है बोलो तभी आए हो इधर आ गए वापिस फिर से मेरे पास क्या काम है बोलो तभी आए हो इधर
दो पल ही खिलना यहाँ, फिर सब माटी धूल। दो पल ही खिलना यहाँ, फिर सब माटी धूल।
तुम कभी ये कह नहीं सकते किस में कम किस में ज्यादा है। तुम कभी ये कह नहीं सकते किस में कम किस में ज्यादा है।
और मेरी इस कविता को तुम पढ़ना चाहोगे बार बार। और मेरी इस कविता को तुम पढ़ना चाहोगे बार बार।
एक पाथेय सबके जीवन के बाद होता ही है। एक पाथेय सबके जीवन के बाद होता ही है।
ख़ुदी मिटा कर दूजों को अपनाती हूँ मैं, फिर भी किसी के ध्यान कभी नहीं आती हूँ मैं। ख़ुदी मिटा कर दूजों को अपनाती हूँ मैं, फिर भी किसी के ध्यान कभी नहीं आती हूँ म...