मौका -परस्ती
मौका -परस्ती
स्वार्थ भरी इस दुनिया में, कटुता की भावना है सब में है छाई।
सबको अपनी-अपनी ही चिंता है, मौका परस्ती सब में है छाई।।
भरा है मन भाव तृष्णा से, कैसे हो जग की भलाई,
खुद तो चिंता ग्रस्त में डूबा, द्वंद से करता है लड़ाई।
अनुकूलता से प्रतिकूल होता जीवन, मन बना बड़ा दुखदाई,
सबको अपनी-अपनी ही चिंता है, मौका परस्ती सब में है छाई।।
सुख-दुख की अब किसको चिंता, क्या समझे नेक कमाई,
इसका छीना, उसका छीना, छल दंभ को है अपनाई।
भुगत रहा है अपने कर्मों पर, फिर भी उसको अकल न आई,
सबको अपनी-अपनी ही चिंता है, मौका परस्ती सब में है छाई।।
अमृत का प्याला छोड़ विष है पीता, करता है उसकी बड़ाई,
फँसता जाता खुद के जाल में, अंतिम घड़ी अब निकट है आई।
जानबूझकर यह सब करता ,संकटों के बादल है छाई ,
सबको अपनी-अपनी ही चिंता है, मौका परस्ती सब में है छाई ।।
दयालुता का पाठ पढ़ा था, क्रूरता ही मन को भाई,
मान बढ़ाई के चक्कर में, भौतिकता ही समझ में आई।
व्यथित हुआ मन "नीरज" का, कैसी लीला तुमने दिखलाई,
सबको अपनी-अपनी ही चिंता है, मौका परस्ती सब में है छाई।।