मैं मुफ्त बिक रही हूँ
मैं मुफ्त बिक रही हूँ
ले लो दहेज ,मैं मुफ्त बिक रही हूँ
मात्र एक पुरूष के लिए हर तरह से नप तुल रही हूँ,
ले लो दहेज, मैं मुफ्त बिक रही हूँ,
पुत्री होने के दण्ड रूप में आज ,
अपने पिता को कर्जों से लदा देख रही हूँ ,
उम्र भग रही है मेरी ,लोगो की इस चिन्ता में ,
खुद के स्वप्नों को स्वाहा होते देख रही हूँ ,
ले लो दहेज ,मैं मुफ्त बिक रही हूँ |
मन में प्रश्नों का सैलाब लिये घुट रही हूँ,
किन कारणों से दुगने हानि में मैं दूसरो को अर्पण हो रही हूँ,
नेत्रों की छलछलाहट को छुपाते हुए ,
परिवार के समक्ष मुस्कुराती फिर रही हूँ ,
ले लो दहेज, मैं मुफ्त बिक रही हूँ |
क्या धन के सिवा मेरे अस्तित्व की कोई कीमत नहीं?
शूल की भाँति चुभने वाले इन प्रश्नों के साथ ,
तिल- तिल कर मर रही हूँ,
क्या प्रेम करेगा वह पुरूष मुझे?
जिसके धन के लालसा के भेंट ,
मैं बलि चढ़ रही हूँ ,
ले लो दहेज, मैं मुफ्त बिक रही हूँ।।