STORYMIRROR

Zeba Rasheed

Tragedy Inspirational

3  

Zeba Rasheed

Tragedy Inspirational

चेहरे

चेहरे

1 min
231

अब बदलते समय का रंग

चेहरों पर मल गया

स्वार्थ की धूल।

हम भूल गए

अपनी पहचान।


लुट जाते है घर बैठे लोग

खो जाते हैं बच्चे रोज।

बरसती है गोलियाँ

टूट जाते हैं मंगल सूत्र रोज।

हर तरफ है रूखापन।

ठंडी बयार के साथ ही

बेरहम गर्म हवा

काले बादल भी बरसाते है

नफरत हर पल।


मन ढूंढते है स्नेह के पल

प्रेम सागर में

शीतल अपनापन भरा जल

जिसमें

अंगूरी भर-भर

धो लें स्वार्थ की धूल।

उतार दे

साम्प्रदायिकता की धूल।



ഈ കണ്ടെൻറ്റിനെ റേറ്റ് ചെയ്യുക
ലോഗിൻ

More hindi poem from Zeba Rasheed

चेहरे

चेहरे

1 min വായിക്കുക

हया

हया

1 min വായിക്കുക

आँसू

आँसू

1 min വായിക്കുക

मजबूरी

मजबूरी

1 min വായിക്കുക

Similar hindi poem from Tragedy