चेहरे

चेहरे

1 min
253


अब बदलते समय का रंग

चेहरों पर मल गया

स्वार्थ की धूल।

हम भूल गए

अपनी पहचान।


लुट जाते है घर बैठे लोग

खो जाते हैं बच्चे रोज।

बरसती है गोलियाँ

टूट जाते हैं मंगल सूत्र रोज।

हर तरफ है रूखापन।

ठंडी बयार के साथ ही

बेरहम गर्म हवा

काले बादल भी बरसाते है

नफरत हर पल।


मन ढूंढते है स्नेह के पल

प्रेम सागर में

शीतल अपनापन भरा जल

जिसमें

अंगूरी भर-भर

धो लें स्वार्थ की धूल।

उतार दे

साम्प्रदायिकता की धूल।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy