स्वार्थ में
स्वार्थ में

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पूछे क्या
मित्र
हाले दिल उनके
मिलते है हम
अपने आप से
रोज-रोज।
पलकों पर जिनके
ठहरे हो आशा के तारे
पूनम का चाँद
देखेगें वे
रोज-रोज।
लेकिन ए मित्र
रहते है मगन
स्वार्थ में जो लोग
शर्मिन्दा करते है
वतन को वे
रोज-रोज।