औरत
औरत
शून्य से जो
जीवन शुरू होता है
उसी की अनन्त कड़ी का
एक प्रारूप औरत
जिसे माँ बहन बीवी
और बेटी कहा गया है
धरा सी विशाल
क्षितिज तक फैली
इसके रूप सौंदर्य
की देव प्रतिमा
जहाँ तहाँ
इसकी करुणा
ममता वात्सल्य
क्षमा और ज्ञान की
धारा हम सब में
किसी न किसी रूप
प्रवाहित हो रही है
हमने कब इसके होने को
स्वीकार किया है
कब नहीं हमने इसकी
अवहेलना की है
कई अनगिनत पीढ़ियाँ
जिसकी ऋणी है
जिनको इसकेपैरों
के अमृत को
धो धो कर
पीना चाहिए
वही समाज के
ठेकेदार बन इसकी
अग्नि परीक्षा लेने
के लिए अपने
आसन पर ब्रह्मा
बनकर विराजमान है
अपनी आँखों से अज्ञानता
धर्मान्धता का काला
चश्मा हटाओ और
साक्षर अक्षर के
मोल को पहचान
कर इसको इसके
होने के वज़ूद को
इसका सही किरदार
और इसकी सही
पहचान हम सबको
ही दिलानी है
ये किसी और की नहीं
हमारी माँ बहनों
की ही कहानी है
कब तक हम इनका
गला कोख़ में ही
घोंटते रहेंगे
कभी तो इनकी
जायज़ चीख पुकार
हमारे गरेबाँ को
चाक़ करेगी
कभी तो हम भी
औरत को उसका
सही मान सम्मान देंगे
वो दिन अभी तो अयेगा
जब हम माँ को माँ
और बहन को बहन
का दर्जा देंगे
जब हम दुनिया को
उनकी दृष्टि से देखेंगे
हम उनको भी
दुनिया का एक अहम
हिस्सा समझेंगे
औरत क्या नहीं है
सब कुछ है
औरत शून्य से
अनन्त तक है
और जहाँ औरत
नहीं है
वहां कुछ भी नहीं है
औरत सर्वत्र है
औरत सर्वस्व है...
औरत...औरत..है....
वो एक जननी है....और
जननी
भारत माता है
सर्वस्व है...
सर्वत्र है...
