कमल की सीख
कमल की सीख
कमल,पंकज, राजीव, जलज
अरविन्द, शतदल, अम्भोज, उत्पल
एक पुष्प, अनेकों नाम
भिन्न आकार, भिन्न काम
आधार लेकर नामों का,
ये पुष्प छंटा नहीं करते
जाति धर्म के बांटों पर,
इन्दीवर बंटा नहीं करते
सम्बोधन का अन्तर इनमें,
बैर भाव नहीं बोता है
हो चरण, नयन या ह्रदय कोई,
कमल, कमल ही होता है
फिर क्यूँ हम मानव पग-पग पर,
धर्म का रोना रोते हैं
माया के पतित सरोवर में,
हम भी तो कमल ही होते हैं
क्यूँ भूमि के टुकड़ों के लिए,
मानव से मानव लड़ता है
सुगन्ध की सीमा को लेकर कभी,
क्या कंज से कंज झगड़ता है ?
आओ त्यागें ये दंभ सभी,
हम एक बने, मिलें, रहें
इस विश्व पटल पर आओ हम सब,
पुष्कर बनकर खिले रहें।