नारी
नारी
नारी मूरत त्याग की, नारी ममता रूप।
अपने बच्चों के लिए, सह जाती हर धूप।
इसके असीम प्रेम से, टिका रहे संसार।
अपने नाज़ुक हाथ में, लेती जग का भार।
इसे नहीं कुछ चाहिए, दे दो थोड़ा मान।
कर देगी फिर आपके, कुल का ये कल्याण।
आज़ादी से प्यार है, उड़ने की है चाह।
आसमान को ये छुए, मिल जाए जो राह।
पैसे से मत तौलना, इसका अनुपम भाव।
अपनों का धिक्कार ही, देता गहरा घाव।
ये तो वो मुस्कान है, स्वर्ग बना दे द्वार।
इससे ही तो गूंजता, हर आँगन त्यौहार।
आज बता दूँ आपको, एक राज की बात।
जीतो केवल प्रेम से, प्यार नार की मात।