STORYMIRROR

Shraddhanjali Shukla

Drama

3  

Shraddhanjali Shukla

Drama

अपराध

अपराध

1 min
343

मेरे अपराधों की भगवान ये सजा है

मैं न आऊँ दर तेरे तेरी ये रजा है

कोई निरपराध नहीं इस धरा में मालिक-

पाप की फैलने दी आखिर सबने ध्वजा है


हम सब जानते हैं ये तेरा ही श्राप है

रोज जन्मता यहाँ गहरा एक पाप है

बेटी लुटती है,बेजुबान कटता यहाँ-

रोज होता अब अधर्मियों का ही जाप है


होते देखे हैं यहाँ लाखों पाप सबने

आज जां पर जो बनी तो सब लगे छिपने

लोग समझते हैं मंदिर बन्द उसने किये-

कौन जाने तेरा दिल नहीं करता मिलने


राह छोड़ धर्म की यूँ ही मुड गया था मैं

पाप की एक कड़ी से जो जुड गया था मैं

मौन बंद नालियों में खामोशी से रहा-

जानता हूँ की भीतर से सड़ गया था मैं


पर ए रहमदिल रब्बा अब रहमत कर दे

ए मालिक खाली है झोली मेरी भर दे

तौला तुझे जात-पात के तराजू हमने-

पर तू तो जगत पिता है मुसीबतें हर दे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama