जिंदगी
जिंदगी
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ए जिन्दगी मुझे तुझ से क्या गिला।
मेरे ही कर्मों का है ये सिला।।
शाम तन्हा जो तेरा क्या कसूर।
मैं बनी कभी ना किसी की हुजूर।।
छोड़ा हर एक को मैनें खुद ही-
प्यार का कभी कोई फूल न खिला।।
ए जिन्दगी...
मैं झूठ कोई सह ही ना पाई।
मेरी सौगात मेरी तन्हाई।।
करती गई दूर सबको हमेशा-
जिन से मुझे सदा ही धोखा मिला।।
ए जिन्दगी...
झूठी हँसी से रोना भला है।
मेरे सफर तो न कोई चला है।।
फरेब की जमीं पर न यारों कभी-
देख फूल मोहब्बत कोई खिला।।
ए जिन्दगी...