STORYMIRROR

अच्छा नहीं लगता

अच्छा नहीं लगता

1 min
29.1K


रोज़ ही सामने होता है कुरुक्षेत्र

रोज़ ही मन मे होता है घमासान,

रोज़ ही कलम लिख जाती है

कुछ और झूठ,

दबाकर सत्य को,

होता है कोई अत्याचार का शिकार,

अच्छा नही लगता---

रोज ही दबा दिए जाते हैं,

गरीब के हक,

जो सच होता है, 

उठती है, उसी पर उंगली,

उसी पर शक,

अच्छा नही लगता---

सच पता है पर,

सच को नकारना भी है एक कौशल,

और इसमें पारंगत हो चुकी हूं मैं,

भावुकता पर विजय पा,

एक झूठ को जिये जा रही हूँ मैं,

किसी फूले गुब्बारे में,

पिन नही चुभाती मैं,

किसी पिचके हुए को ही,

पिचकाती जा रही हूँ मैं

अच्छा नही लगता---

जानती हूँ, मैं नही करूंगी,

फरियाद ऊपर तक जाएगी,

धनशक्ति वहां भी जीत ही जाएगी,

सो, अनचाहा किये जा रही हूँ।

व्यवस्था में ढलना आसान न था,

पर व्यवस्था के विपरीत,

और भी कठिन,

सो भेड़चाल चले जा रही हूँ मैं

अच्छा नही लगता----

देख कर बढ़ती परिवार की जरूरतें

मानवीयता को मार,

रिश्तों के मोह से उबर,

रोज ही खून किये जा रही हूँ मैं

अच्छा नही लगता---

पर जिये जा रही हूँ मैं---


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational