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Rashmi Sinha

Others

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Rashmi Sinha

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घुंघरू

घुंघरू

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    (1)

मैं कल्पना---, मैं बेलगाम---

मैं मदमस्त गज,

मैं कुलांचे भरती हिरणी,

मैं निर्बाध दौड़ती अश्व--


तुम कवि, तुम महावत,

तुम अश्वारोही---

बांध ही दो न,

कुछ जंजीरें मेरे पांवों में,


 वरना ये बेलगाम कुलाचें,

ये अश्वों की टापें---

एक गलत उदाहरण रख ही जाएंगी,

समाज के एक हिस्से को,

 बिगाड़ ही जाएंगी---


जरूरी है अंकुश,जरूरी है लगाम,

 तुम न लगाओगे--

मैं खुद ही

ये बेड़ियां पहन आऊंगी,

  मैं बेलगाम----


     (2)

देख रहे हो?

इस अंकुश और लगाम का असर--

अब मुझ में भी है,

सही ,गलत का डर,


हर कदम सही राह पर---

उठता नजर आता है,

मन मयूर हुआ जाता है---


मेरा कत्थक, मेरा भरतनाट्यम,

बटोर रहा है, असंखय तालियां,

पांव आलते से लाल हुआ जाता है,


और सुनो तो ये घुंघरू क्या फरमाते हैं?

मोहे आई न जग से लाज,

मैं इतना झूम के नाची आज,

के घुंघरू टूट गए-----


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