हम महिलाएं
हम महिलाएं
8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, सबको बधाई,
मैंने कभी भी स्त्री को कमजोर नही माना न दिमागी रूप से न शारीरिक रूप से।
अब तो और मैं मुग्ध भाव से निरंतर आगे आती स्त्रियों को ही निहारती रहती हूँ, क्या बोलूं, नीचे चार स्त्रियां देख रहे हैं न ? इनकी शक्ति को तो हमसब ने खुद ही देखा है। कुछ इतिहास में वर्णित स्त्रियां, कुछ खेल जगत कुछ सिनेमा तो कुछ विभिन्न व्यवसायों में लगी----
और अभिव्यक्ति का ये मंच मिलते ही उम्र को भूल खुद अपने लिए जीती ये स्त्रियां
फिलहाल दो मनोस्थिति में लिखी दो कविताएँ,-
(1)
तुम्ही कहो,
क्यों मनाएं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ?
इस एक दिन में क्या खास हो जाता है,
क्या तुम्हें नही लगता---
स्त्री है मात्र एक देह,
जिसे हर कोई नोंच खाता है.
कितनी ही सर्विस करने वालियों को,
कोई ट्रक ड्राइवर, कोई भी टेम्पो वाला,
बेइज़्ज़त कर जाता.
और युद्ध की विभीषिका---
इसमे भी नारी का बलात्कार ?
क्यों ! क्यों ! क्यों !
चीख, चीख कर पूछ रहा मन,
उत्तर न पा, गूंगा हो जाता,
तुम्ही कहो,
नहीं कर सकते जब,दिमाग का मुकाबला,
हर कोई अश्लील फिकरे,
अश्लील हरकतों पर उतर आता है.
क्यों मनाएं महिला दिवस,
करो विद्रोह, करो बायकॉट,
आवाज़ उठाने, प्रतिरोध दर्ज कराने में,
आखिर क्या जाता है।
(2)
अब दूसरी अभिव्यक्ति-
बाहर के संसार को भी,
खुशनुमा बनाती औरतें,
पुरुषों के कंधे से कंधा मिला,
काम मे जुट जाती औरतें,
कभी पायलेट तो कभी,
इंजन ड्राइवर बन जाती औरतें,
कुशलता से नृत्य करती,
ग़ज़लें गाती, सिनेमा बनाती,
अपने अस्तित्व की सार्थकता,
सिद्ध कर जाती औरतें.
माँ है, बच्चे संभालती,
गृहस्थी भी कुशलता से निभाती,
दोहरी ड्यूटी निभाती औरतें,
आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर,
दिमागी सिक्का जमाती औरतें---
क्यों न हो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस,
काम भी करती, किंतु अवसर पर,
साड़ी, बिंदी, आलता, सिंदूर,
चूड़ी, पायल पहन,
उन्मुक्त, खिलखिलाती औरतें,
मन मोह जाती औरतें---