तू क्यों न बुद्ध बन पाई नारी तू क्यों न पुरुष बन पाई ? तू क्यों न बुद्ध बन पाई नारी तू क्यों न पुरुष बन पाई ?
घूंघट में उंगलियों की खिड़की बना वो देख रही है नारियों को। घूंघट में उंगलियों की खिड़की बना वो देख रही है नारियों को।
सियासत होती देखी है महिला उत्थान पर हमेशा, क्या कभी किसी महिला के घर जा कर देखा भी है. सियासत होती देखी है महिला उत्थान पर हमेशा, क्या कभी किसी महिला के घर जा कर दे...