महिला दिवस
महिला दिवस
घूंघट में उंगलियों की खिड़की बना
वो देख रही है नारियों को
जो मना रही हैं
महिला दिवस
जो खिलखिला रही हैं
जो गुनगुना रही हैं
जो चल रही हैं
पुरूषों से कन्धा मिला
जो दे रही हैं भाषण
जो चला रही हैं
देश प्रशासन
जो निडर हैं
जो निर्भीक हैं
जो लगा रही हैं डण्डे
बीच चौराहे पर
आवारा लड़कों में
जो दौडा़ रही हैं
दुपहिया - चौपहिया वाहन
भागती सड़कों के पे
जो उड़ा रही हैं जहाज
नाप रही हैं आसमां
जो दौड़ रही हैं
अकेली ही
जो पढ़ रही हैं
जो पढा़ रही हैं
जो लिख रही हैं
मन के जज्बात
जो दिखा रही हैं
अपना चमकता चेहरा
पूरे आत्मविश्वास से
जो पहन रही हैं कपडे़
अ
पने हिसाब से
जो बोल रही हैं खूब तेज
जो तोड़ रही हैं बेड़ियां
वो देख रही है
भौचक्क देख रही है
अपने गांव से बाहर
एक नई दुनिया
पहली बार शहर आकर
वो समझ रही है
"आजादी" शब्द का मतलब
वो सोच रही है
कितनी लम्बी होगी वो लड़ाई
जो ये नारियां लड़कर आई हैं
वो धम्म से बैठ गई है
और सोच में पड़ गई है
कि कैसे पहुंचेगी यहां तक
क्या ये नारियां बनायेगीं
रास्ता उसके लिए
या लड़नी पडे़गी उसे
अपनी खुद की लडा़ई
वो मजबूत बन रही है
वो प्रण कर रही हैं
अपने आप से
वो सज्ज हो रही है
वो लेकर ही रहेगी
अपने हिस्से की आजादी
और मनायेगी एक दिन
महिला दिवस.........