नारी, तू न पुरुष बन पाई
नारी, तू न पुरुष बन पाई
नारी, तू न पुरुष बन पाई
तू त्याग की मूरत
ममता - प्रेम को न तज पाई
बुद्ध और राम ने तुझको तजा
पर तू कहां इनको तज पाई
नारी, तू पुरुष न बन पाई
प्रेम की लाज को
तू अग्नि में जली
प्रेम की मूरत
तू कहां प्रियतम की
अग्नि परीक्षा ले पाई
नारी, तू न पुरुष बन पाई
सारी कुरीतियां तेरे लिए
तेरे जन्म पर सब आंसू लिए
संसार ने तुमको भार समझा
अबला कहकर
शोषण का आधार समझा
जालिमों के बीच भी तू
प्रेम को कैसे न तज पाई
नारी, तू न पुरुष बन पाई
क्या ज्ञान की खोज पुरुषों को थी
जो तज दिया तुझको
तू क्यों न ज्ञान की
खोज में निकल पाई
तू क्यों न बुद्ध बन पाई
नारी तू क्यों न पुरुष बन पाई ?
