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Raghav Dixit

Tragedy Inspirational

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Raghav Dixit

Tragedy Inspirational

प्रेम की, भीख न मांगूंगा

प्रेम की, भीख न मांगूंगा

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 जीवन जल कर छार बने 

       नाव मेरी मझधार फंसे 

   कितनी ही करुण दशा हो जाये 

     जीवन रहे या न रह जाये 

       इस निष्ठुर जग से 

   दया की किंचित भीख न मांगूंगा 

      घृणा मेरा स्वभाव नहीं 

    पर प्रेम की भीख न मांगूंगा 


संघर्ष अगर अड़ बैठा है 

चित करने की ठाने बैठा है 

किंचित न भयग्रस्त हूँ मैं 

लड़ने में अभ्यस्त हूँ मैं 

दो-दो हाथ करूँगा 

किंचित रण न छोडूंगा 

समर भूमि में 

जीवन की भीख न मांगूंगा 

..... इस निष्ठुर जग से 

     प्रेम की भीख न मांगूंगा 

                  


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