प्रेम की, भीख न मांगूंगा
प्रेम की, भीख न मांगूंगा
जीवन जल कर छार बने
नाव मेरी मझधार फंसे
कितनी ही करुण दशा हो जाये
जीवन रहे या न रह जाये
इस निष्ठुर जग से
दया की किंचित भीख न मांगूंगा
घृणा मेरा स्वभाव नहीं
पर प्रेम की भीख न मांगूंगा
संघर्ष अगर अड़ बैठा है
चित करने की ठाने बैठा है
किंचित न भयग्रस्त हूँ मैं
लड़ने में अभ्यस्त हूँ मैं
दो-दो हाथ करूँगा
किंचित रण न छोडूंगा
समर भूमि में
जीवन की भीख न मांगूंगा
..... इस निष्ठुर जग से
प्रेम की भीख न मांगूंगा
