बाप का प्रेम
बाप का प्रेम
मैं मासूम था
मैं नादान था
मैं उनके
हर त्याग से
अनजान था
वो मेरी राहों के
कांटे समेट लाए
मैं समझता रहा
रास्ता आसान था
मेरे सपनों को
ऊँचाई मिलती रही
कंधों पे उनके
परछाईं चलती रही
वो हँसी में छिपा
दर्द सहते रहे
मेरे लिए हर बोझ
खुद ही ढोते रहे
असल योद्धा तो
वो ही थे
और हम नादान
खुद को विजेता कहते रहे
