गंगा का निर्मल जल
गंगा का निर्मल जल
मैं सरिताओं सा बहता जल
सागर को मैं चला निकल
संगतियों ने मुझको पकड़ा
विसंगतियों ने मोह में जकड़ा
संगतियों के ढंग निराले
कुछ भी हो पर है शिक्षा देने वाले
संगतियों ने अपने गुण डालें
विसंगतियों ने अपने गुण डालें
जैसे सरिताओं से मिलते
नदियाँ और नाले
मैं तो गंगा का निर्मल जल
सागर को मैं चला निकल
नदियां मिली स्वीकार किया
नाले मिले स्वीकार किया
दोनों ने अपने गुण भरने का
भरसक प्रयास किया
मतिभ्रष्ट कहां जानते हैं
मैं चंदन सा पादप शीतल
सागर को मैं चला निकल।
