कुदरत
कुदरत
कुदरत की कमाल की अदाएं हैं।
विज्ञान के गुण हम गाते रहते लेकिन कुदरत से कहां पार पाएं हैं।
सूर्य, चंद्रमा, ऋतुऐं सब अपने समय पर ही आती है।
जिस प्रदेश में जिस तरह के फल सब्जी की जरूरत है
उस प्रदेश में वैसे ही फल और सब्जी उग जाते हैं।
समुद्र तट के पास में मीठे पानी के लिए नारियल के लगे पेड़ देखो।
भीषण गर्मी में मीठे तरबूज की बेल देखो।
कुदरत अपने हर बच्चे का ख्याल रखती है।
प्राण वायु प्रत्येक को मिले इसलिए वह पवन रूप में भी बहती है।
ज्ञानी बनते बनते मानव तूने कुदरत से क्यों खिलवाड़ किया?
चाहे समुद्र हो या पहाड़ हर जगह को कंक्रीट के जंगल से पाट दिया।
जंगल पूरे समाप्त किए
पशुओं को गृह विहीन किया।
बहुत से पक्षियों को भी लुप्त होने को मजबूर किया।
कुदरत की अदाओं को भूल गया मानव और खुद को ही मजबूत किया।
आ गया करोना काल, मिल गई मानव तुझे सजा।
नदिया स्वतः ही साफ हो गई।
प्रदूषण भी तो खत्म हुआ।
अभी तो सिर्फ चेताया है कुदरत ने,
अब भी नहीं समझा मानव तो ,
देखना तुम कुदरत की नृशंस अदा।
