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Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

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Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

अश्रु !

अश्रु !

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विदाई की बेला में अश्रु ढलक गए।

आंखें तो सुनी सूनी सी ही रह गई,

लेकिन मन को पूरा भिगो कर

वह भीतर को ही सरक गए।


आज आंखों के कोनों में दिखे थे जो अश्रु 

बस कोने ही कोने में ही सिमट गए।

उस दिन तो खुलकर छलके थे

अश्रु भी छम छम बरसे थे।


जब विवाह में थी विदाई की वेला, 

कुछ खुशी थी कुछ गम था,

अश्रु हर उस कंधे पर गिरे थे

जिस जिस से भी गले मिले थे।


फिर बरसात जैसे अश्रु का भी मौसम था आया,

तन मन धन सब कुछ समर्पित करके देखा।

लेकिन बदले में तो कुछ भी ना पाया।


अब अश्रुओं का मौसम रच बस ही गया था,

पूर्ण समर्पण के बाद भी अश्रु तो

आंखों में सदा के लिए ठहर ही गया था।


पहली बार जब गोद भरी थी।

नन्हे नन्हे हाथों की छुअन हुई थी।

खुशियों के आंसू बहते ही रहते

यदि बेटी को देखकर वह मुंह ना फेरते।


नन्ही जान ने जीना सिखलाया।

अश्रुओं की कमजोरी को दूर भगाया।

अश्रु भी कहीं छिप से जाते

जब बिटिया के साथ थे मुस्काते।


उसी हिम्मत से आज दिन यह आया।

जब वकील ने तलाक का कागज पकड़ाया।

अश्रुओं ने फिर से मौका पाया।

एक बार फिर से विदाई की बेला थी,

लेकिन अब बिटिया को था पाया।


इस विदाई की बेला में फिर भी अश्रु ढलक गए

आंखें तो सूनी सूनी सी ही थी,

लेकिन मन को पूरा भिगो गए 

और वह भीतर को ही सरक गए।


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