उम्र का युद्ध
उम्र का युद्ध
लड़ाइयां छोटी हों या बड़ी
सबको लड़नी पड़ती हैं,
बचपन में घुटनों चलने और खड़े होने की,
दूध पीने से लेकर शौच तक की,
नर्सरी में बच्चों के बीच पहचान खोजने की,
कैशोर्य में महबूबा का दिल जीतने की,
युवावस्था में रोजी - रोटी और नौकरी की,
फिर गृहस्थी, बाल बच्चों को पालने और
उनके स्कूल - फीस की,
बच्चों की नौकरी रोजगार के लिए भी जुझते है,
धन-दौलत ही नहीं, सिफारिश भी ढूँढते हैं,
ये लड़ाई सबसे बड़ी है, लंबी खिंचती है,
जैसे-तैसे इसे भी जीतते हैं, कि
नयी लड़ाई शुरू हो जाती है, जो मृत्यु तक चलती ही रहती है...
ये लड़ाई बुढ़ापे से होती है,
जिसमें खड़े होने चलने, बोलने तक
सभी लड़ाइयां, जो आज तक चलीं,
साझा होती हैं…
समझ में नहीं आता कि हम बड़े हुए,
या उम्र घट गयी है?
अब चलना, खाना, रहना-पहनना
सीखना पड़ता है…
मुद्दे समझने के लिए दिमाग़ पर
घंटों ज़ोर डालना पड़ता है,
फिर भी कुछ याद नहीं आता,
ना कुछ नया सीख पाते हैं,
यहाँ आ कर हार जाते हैं...
ये लड़ाई कोई नहीं जीत पाया,
सिकंदर या विक्रमादित्य,
सभी इसे हारे हैं,
मौत के पीछे जा छुपे,
जब सारे हथियार व्यर्थ हुए हैं..
