क्या कहती हो, समझो नारी !!
क्या कहती हो, समझो नारी !!
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !
विश्वास - रजत - नग पतवल में
पीयूष- श्रोत सी बहा करो
जीवन के सुन्दर समतल में
ये कहते थे प्रसाद उन दिनों....
माया के लिए!
पर क्या कहे हम इन दिनों....
निर्भया के लिए!
नारी तुम केवल निष्ठाहीन हो..
और तौहीन हो!
क्या कहती हो, ठहरो नारी !
जो किया आह्ववाहन,
बन गई सबला.... मान हेतु,
और ख़ुद के सम्मान हेतु!
किन्तु मिला ना किसी का सहारा,
बस बना दिया सबने बेचारा.....!
क्या कहती हो, ठहरो नारी !
क्यों अब भी केवल निष्ठाहीन हो,
तौहीन हो...
और बन बैठी बुद्धिहीन हो !
किसका कर रही हो इंतज़ार,
क्यों हो तुम बेकरार...
करना है किसका तुम्हें दीदार !
ये तो वही है.....
जिसने किया तुम्हारा तिरस्कार
क्या कहती हो, ठहरो नारी !
क्यों अब भी केवल निष्ठाहीन हो,
तौहीन हो...
और बन बैठी आधारहीन हो !
अब ना आएंगे कोई मुरलीधर ...
ख़ुद ही करना है परिवर्तन,
साथ मिलकर निरंतर!
होकर समाज से रूबरू.....
आबरू पाना है!
सम्पूर्ण नारी जाति का....
खोया हुआ सम्मान लौटना है !
क्या कहती हो, ठहरो नारी !
तुम केवल शिरोधार्य हो...
तुम्हारा ही जय- जय कार्य हो!
क्या कहती हो ....समझो नारी ,
अब तो ना ठहरो नारी!!!
अब तो ना ठहरो नारी!!!!!