मैं दलित हूँ क्या ये गुनाह
मैं दलित हूँ क्या ये गुनाह
मैं दलित हूँ मुझे कुछ ना समझ आता है मैं जब रास्ता चलूँ लोग दूर हट जाता है।
शायद मैं चमार हूँ हमें यह समझ नहीं आता है
क्या मेरा ये गुस्ताखी क्या मेरा ये दोष है।
एक दलित का बच्चा होना मेरा सबसे बड़ा दोष है।
आज हमें यह कृत्य देख के रोना आ जाता है
मेरा बच्चा जब क्लास में बैठे तो हर बच्चा दूर हट जाता है।
हर समय मेरे कान में चमार चमार ही सुनाता है
एक दलित होना जैसे बुरा कर्म का दोष होना कहलाता है।
आज पढ़ा लिखा शख्स भी यह बात न समझ पाता है
समाज के इस वृतांत पे हमें रोना ही आ जाता है।
हाथ की अंगुलि बराबर नहीं होती हर तथ्य का अनुपात एक नहीं होती
आज लोग बातों ही बातों में मजाक भी उड़ाते है
जब मैं कहीं जाऊँ तो मेरा उपहास ही उड़ाते है
जब मैं समाज में बैठूँ तो बगल वाला पास से उठ जाता है।
मंदिर में मेरा जाना जैसे अछूत ही कहलाता है।
अगर किसी से भूल वश छलूँ तो हमें व्यंग कह जाता है।
चमार होना जैसे मेरा बुरा कृत्य होना नजर आता है।
हम है तो समाज है हम से ही समाज स्वच्छ हो पाता है।
फिर भी जमाना द्वारा हमें बहुत ही तुच्छ नजरों से देखा जाता है।
समाज में चमार को क्यूँ कलंकित ही समझा जाता है
समाज में दलित को क्यूँ बहिष्कृत दृष्टि से देखा जाता है।
आज अध्यापक ने मेरे बच्चे से स्कूल में बाथरूम साफ कराया है।
मेरे आंखों में फिर जैसे आंसू बहुत आया है।
हर बच्चों के आंखों में मेरा बेटा चमार ही नजर आया है।
मेरे आंखों में बह रहे सैलाब को कोई ना समझ पाया है।
लोग हमें दुत्कार कर ऊंच नीच कहते है।
जब मुझे प्यास लगे कुएं पर जाने नहीं देते है
मेरे बच्चे यहां स्कूल में पानी पीने को तरसते है।
शायद ये हमें आज भी अछूत ही समझते है
शायद ये अपने पद का का प्रतिनिधित्व भी खूब करते है।
आज इनका छुट्टी ये आराम करते दिखते है
जब हम पास दिखे तो कूड़े बिनो खाओ अपने को विद्वान ही समझते है
मजदूरी हमें मुफ्त में मिलता दो चार पैसे मांगूँ तो इनका मुंह नाक सिकुड़ जाता है
सम्मान के हम भूखे है अनादर नहीं चाहिए
हम भी ईश्वर के संतान है तिरस्कार नहीं चाहिए
लोग हमसे अपना उल्लू सीधा करवाते है
समाज की बेतुकी रीतियों को जाने क्यूँ अपनाते है।
शिक्षा के बढ़ते मान को कभी हम ना मानते है