Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Dinesh paliwal

Drama Action

4.7  

Dinesh paliwal

Drama Action

।। सूर्य पुत्र या सूत पुत्र ।।

।। सूर्य पुत्र या सूत पुत्र ।।

2 mins
437


हे माधव क्या जन्म मेरा,

हुआ धरा पर इस कारण,

जन्म सूर्य की कांति से पर,

आजीवन रहूँ बन कर चारण ।।

मेरी माता ने बस मुझको ,

जन कर भी अपना ना माना,

किया प्रवाहित सरित वेग में,

मृत या जीवित फिर ना जाना।।

जो जन्मा महलों के सुख लेने,

आंख खुली कुटिया में जागा

सूर्यपुत्र बन कर जन्मा जो,

सूत पुत्र बन जिया अभागा ।। 


मुझको मेरी प्रतिभाओं से ,

जग तो कभी ना आंक रहा,

मेरा शैशव या फिर यौवन हो,

बस वंश वो मेरे झांक रहा,

मैं अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर,

युधिष्ठिर से धर्म नीति में आगे,

पर लगी जन्म से ही गति ऐसी,

भाग्य चक्षु फिर भी ना जागे,

परषुराम सा गुरु पाकर भी ,

द्रोण शिष्य के प्रश्रय मांगा,

सूर्यपुत्र बन कर जन्मा जो,

सूत पुत्र बन जिया अभागा ।। 


पांचाली का हो रहा स्वयंवर,

या राजसूय की हो तैयारी ,

वंश मेरा मेरी प्रतिभा पर ,

हर उस क्षण बस पड़ा था भारी,

व्यर्थ मेरे कवच और कुंडल,

व्यर्थ शक्तियां संचित सारी ,

पुरुषार्थ व्यर्थ ,सब दान व्यर्थ,

बचपन से उठायी जिम्मेदारी,

बस कान गूंजती वो सब निंदा,

जिन से हूँ जन्म से में भागा ,

सूर्यपुत्र बन कर जन्मा जो,

सूत पुत्र बन जिया अभागा ।।


मैंने अधर्म का चयन किया था,

ये लांछन क्यों मुझ पर आये,

तुम खड़े धर्म रथ ध्वज वाहक,

तुम ने क्यों हथकंडे अपनाये,

छीने कवच और कुंडल मेरे ,

माता के वचन से मुझको बांधा

जब युद्ध क्षेत्र में निशस्त्र खड़ा,

अर्जुन ने सर को तब साधा ,

वो सखा तुम्हारा रहा हमेशा ,

माथे कलंक बस मेरे ही लागा,

सूर्यपुत्र बन कर जन्मा जो,

सूत पुत्र बन जिया अभागा ।। 


आज भी ना जाने कितने कर्ण,

यूँ ही तिल तिल कर मरते हैं,

प्रतिभा का कुछ भी मोल नहीं,

सब वंश जाति पर छलते हैं,

धर्म अधर्म, न्याय अन्याय की,

तुमसे योगीश्वर देते हैं दुहाई ,

पर जो वर्षानुवर्ष हैं भेद सहे,

कैसे हो उनकी फिर भरपाई ,

द्वापर से कलयुग आ पहुंचा,

नहीं टूटता ये जात का धागा,

सूर्यपुत्र बन कर जन्मा जो,

सूत पुत्र बन जिया अभागा ।। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama