समय बदल चुका है।
समय बदल चुका है।
समय बदल चुका है अब कोई दिया नहीं जलता।
दिए की लौ में जलने को कोई पतंगा भी नहीं आता।
अब हर जगह जलती है ट्यूबलाइट और अगर कोई मच्छर भी है आता।
दूर बैठी है छिपकली और वह उसका भोजन है बन जाता।
समय बदल चुका है अब परिवार में लोगों से है ना नाता।
मैं और मेरे बच्चे, परिवार में माता-पिता का नाम भी नहीं आता।
मैं अकेला हूं, बुआ, मौसी जैसे रिश्तेदारों मेरा है क्या नाता?
अगली पीढ़ी की तो बिसात ही क्या इस पीढ़ी में ही नहीं है कोई भाई भाई का नाता।
समय बदल चुका है, पति और पत्नी में है बराबरी का नाता।
ना दोनों के कोई कर्तव्य है, और दोनों में से कोई अधिकार भी ना पाता।
ना मतलब मां बाप से है, ना प्यार बच्चों को ही मिल पाता।
व्यस्त पति पत्नी दोनों है, समय है किसी के पास भी नहीं।
वृद्ध आश्रम में है मां-बाप, क्रैच या आया से है बच्चों का नाता।
करोना काल ने समय को फिर से बदल दिया।
चाहे ना चाहे घर में सबको इकट्ठा ही बंद कर दिया।
बच्चे भी है, मां बाप भी हैं और खुद भी हैं आसपास।
दूर दूर के रिश्तेदारों की आ रही है याद।
पैसे पास में है, और खरीदने की जरूरत ही नहीं रही।
विलासिता और चाहत अब जिंदगी के अलावा कुछ भी तो ना रही।
बस एक ही चाहत है किसी तरह से जिंदगी जी जाएं हम।
पेड़ भले ही सारे काटे हो, पर फिर भी ऑक्सीजन पा जाएं हम।
जानवरों को भोजन बनाते हुए चाहे मन कितना ही खुश हुआ हो।
पर अब मन में डर पूरा है कि कहीं काल के ग्रास ना बन जाए हम।
समय बदल चुका है अब समय प्रकृति का है।
सड़कें भी शांत है, नदिया भी साफ है।
प्रकृति को अब हर तरह से अब मिल रहा इंसाफ है।
पोलूशन भी खतम है चिड़ियों की चहचहाहट भी है।
चुन-चुन कर ले रही है अपने बदले, अब हर मानव के चेहरे पर घबराहट भी है।