हरी भरी वसुंधरा का उपहार
हरी भरी वसुंधरा का उपहार
जब देने से सुख मिलता था, सबको मिलता था परमानंद l
जब लेने में सुख मिलने लगा, तब से खो गया आनंद l
देने की शिक्षा पाई जिनसे, आज उन्हें ही भुला दिया l
अपने ही हाथों से हमने, अपने ही जड़ को जला दिया l
धरती के आभूषण को हमने, कभी नहीं सम्मान दिया l
जिनसे जीवन चलता आया, उनका ही क्यों अपमान किया ?
सिलेंडरों में बंद हवा की, छीना झपटी अब क्यों कर रहे?
अब स्वास स्वास दुश्वार हुई, हर पल तिल तिल मर रहे l
वृक्ष अगर ना काटे होते, दो-चार ही सही लगाए होते l
आज ना यूं जीवन बेबस होता, क्रंदन के अश्रु ना गिरते l
नहीं हुई देर अभी भी, अब तो संभलो कुछ करो सुधार l
खुशहाल वसुंधरा करें, दे बच्चों को हरी भरी वसुधा का उपहार l
स्वस्थ सुखी समृद्ध होगा जीवन, जब हरियाली से समृद्ध होगी धरा l
शीतल मंद सुगंधित बहेगी हवा, स्वस्थ, शांत सबका तन मन होगा l
पंछी चहकेंगे डाली पर, वृक्ष फल फूल संग मुस्कुायगा l
झूला डाले इनकी छाया तले, बच्चों का बचपन खिल खिलाएगा l
हरियाली होगी जब भरपूर, बादल खींचे चले आएंगे l
नहीं रहेगा किसान उदास, खेत खलिहान लहलहाएंगे l
जब करेंगे प्रकृति का श्रृंगार, मिले स्वच्छ वातावरण उपहार l
पेड़ बचाओ वृक्ष लगाओ, करे धरनी को फिर खुशहाल l
